फूलों की तुम हयात
हो तारों का नूर हो
फूलों की तुम हयात
हो तारों का नूर हो
रहती हो मेरे दिल में
मगर दूर-दूर हो
ना तुम ख़ुदा हो, ना हो फरिश्ता, ना हूर हो
लेकिन मैँ खिंचा जाता
हूँ कुछ तो ज़रूर हो
हूरें फलक़ से आती
हैं दीदार को उसके
जब हुस्न ऐसा पास हो
क्यों ना गुरूर हो
सारा शहर तबाह है उल्फ़त
में तुम्हारी
तुम क़त्ल भी करती
हो फिर बेक़ुसूर हो
लिख्खेगा ग़ज़ल ताजमहल-सी
कोई 'सिराज'
थोड़ी-सी इनायत जो
आपकी हुज़ूर हो
à सिराज फ़ैसल ख़ान (एक होनहार नौजवान प्रतिभा हैं)
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