Saturday, November 30, 2013

रोग, भोग और आढ़तियों का योग

रोग, भोग और आढ़तियों का योग


                                                                            -- प्रताप


चारों तरफ़ गुरुओं की धूम मची है। हर विपणक के यहाँ योग से सम्बन्धित सामग्री बिक रही है। चारों ओर आढ़त का बाजार लगा है। लोग योग बेच रहे हैं  कुछ अन्य लोग योग खरीद रहे हैं। कोई आसन बेच रहा है, कोई अच्छे वाले आसन ईजाद कर रहा है। कोई ध्यान के सस्ते दाम लगा रहा है। किसी दुकान पर कुण्डलिनी उठवाई जा रही है। कुछ लोग प्राणायाम बेच रहे हैं। बता रहे हैं कि माल अच्छा है, साथ में गारन्टी दे रहे हैं कि मोटापा कम कर देगा। इस ध्यान- योग के बाजार में कुछ दुकानों पर एक्सेसरीज़ भी बिक रही है। ज्यादा भीड़ उन दुकानों पर है जहाँ एक्सेसरीज़ या तो हर्बल है या फिर उन्हें आयुर्वेद में से कहीं से आया बताया जा रहा है। पूरे बाजार  में चहल पहल है। चतुर सुजान, उत्तम वस्त्र पहनकर दुकानों के काउन्टर पर विराजे हुए हैं। मुद्राओं को रेशमी थैलियों में बन्द करके नीचे सरका रहे हैं। कुछ लोग वहाँ दूर शेड के नीचे बैठे हैं। बिल्कुल चुप । पूछा - कौन हैं ? पता चला - बुद्धिजीवी हैं।

सवाल हाट के अस्तित्त्व पर नहीं हैं। हाट को तो होना ही है, यहाँ नहीं होगा तो कहीं और होगा। जब तक क्रेता  का थैला और विक्रेता का बटुआ है, भिन्न भिन्न स्पेस टाईम में हाट अवतरित होता रहेगा। यह अनिवार्य है। सवाल दुकानों पर तथा माल पर भी नहीं हैं। हाट है तो अच्छा, भला, बुरा सभी तरह का माल भी सप्लाई होगा ही। वणिक नियमों के तहत् गंजों को भी कंघी बेचने के प्रयास तथा इन प्रयासों में सफलता-असफलता सभी कुछ होगा। कभी कंघी बिक जाएगी और कभी नहीं भी बिकेगी। कंघी के कारीगर, आढ़तिये सब अपना अपना हिस्सा कैलकुलेट करते रहेंगे। बाजार का व्यापार यूँ ही चलता रहेगा। व्यापार को यूँ चलाना बाजार की फ़ितरत है। फ़ितरत पर सवाल नहीं खड़े किये जा सकते हैं। सवाल तब उठते हैं जब कोई अपनी फ़ितरत के खिलाफ़ काम करता है।

गंजे को कंघी बेचना वणिक चतुराई है। बाजार इस चतुराई की नींव पर ही खड़ा होता है। परन्तु बवासीर के रोगी को कंघी बेचना मैलप्रैक्टिस (महाठगी) है।
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परन्तु आज परिस्थितियाँ तब के मुकाबले बदल गई हैं जब योगसूत्र रचा गया था । पातंजलि के सामने कैलोरी बर्न की समस्या नहीं थी जबकि आज की मुख्य समस्या ही कैलोरी बर्न की है। पातंजलि के साधक के सामने कुण्ठा और आत्मरोध की वह घातक स्थिति नहीं थी जो आज के मनुष्य के सामने बॉस की डांट, बच्चों के एडमिशन, पुलिस की हेकड़ी, काम के दबाव, गलाकाट कम्पीटीशन आदि ने पैदा कर दी है। आज एल्कोहलिकों की तर्ज़ पर वर्कोहलिक पैदा हो रहे हैं। ये सब पातंजलि और योगसूत्र के लिए अज्ञात थीं अतः योगसूत्र के भीतर इनका निदान भी संभव नहीं है।


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