Sunday, December 22, 2013

हस्तिनापुर के मल्ल

हस्तिनापुर के मल्ल

राजनीति और पहलवानी में सार्थक समानताओं का दौर आजकल दिल्ली में देखने को मिल रहा है। वैसे तो पहलवानी के लिए अलग स्थानों पर रिंग (पुराना नाम अखाड़ा) की अलग व्यवस्था की जाती है परन्तु आजकल इसे दिल्ली की गलियों, नुक्कड़ों और चौराहों पर देखा जा सकता है। क्योंकि ये मल्ल (नया नाम पहलवान) सभी व्यवस्थाओं को बदलने का वादा करते हैं इसलिये इन्होंने प्रहार करने का तरीका भी बदल दिया है। पहले शरीर की ताकत को परखा जाता था परन्तु इस बार दिमाग़ की पैंतरेबाजी और ज़बान की ताकत पर ज्यादा भरोसा किया जा रहा है।

पहलवानों का एक समूह इस हस्तिनापुर नगरी में आ गया बताते है। उनकी खूबी है कि किसी को भी गाली दे देते हैं। उनका दृष्टिकोण बिल्कुल नयी किस्म का है। उन्हें लोगबाग साँप और बिच्छु नजर आते हैं। सुना है कुछ लोगों उन्हें बताया कि वे तो लोगों को साँप-बिच्छु कह रहे हैं तो उन्होंने उन बताने वालों पर ही हमला बोल दिया। उनमें से एक नामी पहलवान ने बताने वालों को धोखेबाज और चालबाज बता दिया है।

हरेक नुक्कड़ पर ढोलक बजाई जा रही है। आओ हमारा मल्लयुद्ध देखो। हम विरोधियों की पुंगी बजा देंगे। दर्शक जमा हो गये। मज़मा लग गया। किसी ने पूछा कि मल्लयुद्ध में पुंगी कैसे बजाओगे। तो मल्लप्रमुख ने कहा हम उनके वस्त्र फाड़ देंगे। पूछा गया कि मल्लयुद्ध में दूसरों के कपड़े फाड़ने का नियम नहीं है तो कपड़े क्यों फाड़ोगे? उत्तर मिला कि हम व्यव्स्था परिवर्तन चाहते हैं। मल्लप्रमुख की भुजाएँ फड़कती हुई दिखाई देती हैं। उसने अपना मफलर कस कर लपेट लिया है। ऊँचे स्वर में कहता है हम उन सबको जेल भेज देंगे। दर्शकों में से एक ने पूछा क्यों जेल भेज दोगे। उत्तर दिया जाता है कि हमें व्यवस्था जो बदलनी है।

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Monday, December 16, 2013

उपवन प्रबंधन के बोझ से हाँफती तितलियों की व्यथा


परन्तु  दिल्ली की जनता अवाक् है। कुछ कहते नहीं बन रहा है। अनेक नए मतदाताओं ने इस बार एक निर्वाक् क्राँति Silent Revolution को वोट दिया था। बिना किसी शोर के दिल्ली की शासन धमनियों में एक नये रंग का रक्त प्रवाहित कर दिया था ताकि एक सड़े हुए सिस्टम का बोझ उसे और ना उठाना पड़े। लेकिन चुनाव परिणामों ने ना सिर्फ़ बोझ और अधिक बढ़ा दिया है बल्कि जो चेहरे तारनहार के रूप में अवतरित होकर सामने आए थे चुनावों के बाद उन चेहरों की आभा ही समाप्त हो गई है। वे चेहरे आभाहीन नज़र आ रहे हैं। जनता किंकर्त्त्तव्यविमूढ़ है, दुविधा में है, कन्फ्यूज़्ड है कि ऐसे में क्या करे। भरोसा चूर चूर हो गया लगता है।

आओ विचार करें।

सत्ता का स्वरूप राजनीतिक है राजनीति पर आधारित है। वैसे ही जैसे कि बाजार का स्वरूप मौद्रिक है मुद्रा (पैसे) पर आधारित है। यदि कोई सज्जन यह कहे कि उसे बाजार से कोई गुरेज़ नहीं है बस उसमें पैसे का चलन रोक दो। पैसा बुरा है। पैसा लोभ लालच की जड़ है। बाजार में से पैसा हटा दो तो मुझे बाजार स्वीकार है और मैं भी अपनी दुकान खोलने के लिये तैयार हूँ। तो ऐसे तर्क सुनकर विद्वान लोग उन सज्जन को कहते हैं कि आप को यदि पैसे से परहेज़ है तो बाजार में आते ही क्यों हो। दुकान खोलते ही क्यों हो। अध्यात्म में जाओ और आश्रम खोलो। दुकान मत खोलो।

ऐसे ही तर्क आजकल दिल्ली की हवाओं में तैर रहे हैं। हम सरकार बना सकते हैं यदि आप वादा करो कि आप कोई राजनीति नहीं करोगे। यदि आप वादा करो कि आप अपने आँख कान मूँदकर हमारे पीछे पीछे चलोगे। यदि आप वादा करो कि आप हमारी गालियों के जवाब में चुप रहोगे। गालियाँ तो हम आपको इस लिये देते हैं कि हम ईमानदार हैं और अन्य कोई ईमानदार नहीं है। वादा करो कि चुपचाप हमारी गालियाँ सुनते रहोगे और कभी पलटकर जवाब नहीं दोगे। अगर जवाब दे दिया तो हम सरकार नहीं बनाएँगे।

अब किसी दल को कोई समाधान सूझ नहीं रहा है। वे राजनीतिक दल हैं। राजनीति ना करें तो क्या करें। शासन समीकरणों द्वारा राजनीति ही उन दलों का आकार तय करती है। वे दल शासन का स्वरूप तय करते हैं। अब शर्त लगाई जा रही है कि आप राजनीति ना करें। तो ऐसे में वे दल क्या करें। अगर वे दल राजनीति ना करें तो फिर राजनीति कौन करेगा। आप तो ईमानदार हैं राजनीति करोगे नहीं तो क्या आप उसी राजनीति को समाप्त करना चाहते हो जो राजनीति आपके जन्म, वृद्धि और पराक्रम के लिये जिम्मेदार है। जो राजनीति आपको मुख्य पटल पर लाई वही आप बंद करवा रहे हैं तो फिर जनता का क्या होगा जिसके पास राजनीतिक पद्धति के रूप में मतदान सबसे बड़ा हथियार है। आपकी ये बातें तो उसी जनता के खिलाफ हैं जिसने आपके  लिये वोट किया था। क्या आप ऐसी बातें सोच समझ कर रहे हैं क्योंकि आपका दावा है कि आपसे बेहतर कोई अन्य नहीं सोच सकता है।

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Saturday, December 14, 2013

18 Conditions of AAP: पास करोगे तो ही परीक्षा दूँगा

18 Conditions of AAP: पास करोगे तो ही परीक्षा दूँगा


बच्चों के खेल में जिसके पास बैट या बॉल होती है वह खेल को शुरू करवाने के लिए अपनी शर्तें रखता है। पहले मुझे बैटिंग दोगे तो खेलूँगा। या मुझे बॉल धीमी फेंकोगे तो खेलूँगा। तेज बॉलिंग करोगे तो नहीं खेलूँगा। मुझे हाफ़ सेंचुरी से पहले आऊट करोगे तो अपना बैट वापिस ले लूँगा। आदि आदि।
दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में आजकल कुछ ऐसा ही देखने में आ रहा है। विधानसभा में किसी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं आया। भाजपा के पास 32, AAP के पास 28 और काँग्रेस के पास 8 विधायक हैं। उपराज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित किया तो उसने अपनी असमर्थता जाहिर कर दी। इसके बाद एक राजनीतिक प्रहसन शुरू हो गया जिसे दिल्ली की जनता और प्रतिनिधि संभवतः पहली बार देख रहे हैं।
काँग्रेस ने बिना शर्त AAP को समर्थन की घोषणा कर दी। जवाब में AAP ने 18 शर्तों की फेहरिस्त जारी करके कहा कि यदि काँग्रेस और भाजपा इन 18 शर्तों को मानेंगे तो हम सरकार बनाएँगे वरना तो नहीं बनाएँगे। अभी तक राजनीति को गम्भीर कार्यों का स्थान समझा जाता है। कुछ लोगों को कहना है कि AAP की राजनीतिक विजय के पश्चात राजनीति में अगम्भीरता बढ़ी है। लोग कुछ भी अव्यवहारिक कह देने को सामान्य मानने लगे हैं।
राजनीति के विचारक पूछते हैं कि इन 18 शर्तों से बड़ा राजनैतिक मज़ाक और क्या हो सकता है। ये 18 शर्तें वे वायदे हैं जिन्हें AAP ने दिल्ली के जनता से किया था। इन 18 शर्तों को अगर वे अपने विरोधियों से पूरा करवाना चाहते हैं तो फिर वे स्वयँ क्या करेंगे। चुनावों में उनका वायदा था कि वे खुद इन 18 शर्तों को पूरा करेंगे। लेकिन अब वे इन्हें अपने राजनीतिक विरोधियों के द्वारा पूरा करवाना चाहते हैं।
AAP का कहना है कि हमें इन 18 शर्तों को पूरा करके दोगे तो ही हम सरकार बनाएँगे। टीवी के कार्यक्रमों में आए एक विद्वान ने कहा कि ये नौसिखिये लोग हैं जो सरकार बनाने के लिए बालकों के खेल जैसी शर्तें रख रहें हैं। जनता के बीच काम करने से पहले ही ये अपने विरोधियों से इनके खिलाफ़ राजनीति ना करने का आश्वासन चाहते हैं। यह एक भयभीत दल का काम है। समरवीर यौद्धा इस तरह की पलायनवादी बातें नहीं करते कि परीक्षा में तभी बैठेंगे जब पास कराने का भरोसा दोगे।
पूछा जा रहा है कि यह राजनीति है या राजनीति के नाम पर वितंडा है।
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Friday, December 13, 2013

Interview of a Married Woman For The Benefit Of the Unmarried Ones...


Interview of a Married Woman For The Benefit Of the Unmarried Ones...


   
http://psmalik.com/just-chill-area/191-interview-of-a-married-woman
                       

A 26-year-old woman, Y, from Haryana (yes there are women in Haryana), today talked to Faking News about her married life experiences. Check out what’s her say on married life.

 

Reporter: So, what is the definition of “Husband” for you?

 

Y: A husband is someone who after putting salad on plate, gives the impression he just cooked the whole dinner. And this definition is not just for me, this is for every wife in the world.

 

Reporter: Then why does every woman need a husband?

 

Y: Well, we can’t blame Government for everything gone wrong.

 

Reporter: But men complain that wives complain a lot? Is this true?

 

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INTERVIEW OF A MARRIED MAN FOR THE BENEFIT OF THE UNMARRIED ONES…


INTERVIEW OF A MARRIED MAN FOR THE BENEFIT OF THE UNMARRIED ONES…



A 28 year old married man, X (name changed), from Rajasthan today talked to News reporter about his married life. Do read the interview; it has some really useful tips and advice for all the unmarried ones who are dying to get married:
 Reporter: So how is your married life?
Mr X: First of all, “married life” is an oxymoron.
Reporter: But people say marriages are made in heaven?
Mr X: Only if heaven is full of Chinese people.
Reporter: So yours was an arranged marriage, how was it?
Mr X: Arranged marriage for a man is like Eid for a goat. They treat him like a prince, feed him with great foods, and dress him with bright colours and then…
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FOR WOMEN TO READ
 

Sunday, December 8, 2013

दिल्ली चुनाव 2013: अमूर्त मुख भाजपा

दिल्ली चुनाव 2013:  अमूर्त मुख भाजपा

PS Malik


पाँच राज्यों के चुनाव हुए। नतीजे आए। उनकी घोषणाएँ हुईं। अब आगे सरकारों का गठन होगा। सब सामान्य लगता है। राजनीतिक विश्लेषक अपने अपने विश्लेषणों में जुट गए।
परन्तु दिल्ली में कुछ अलग हुआ; कुछ विचित्र हुआ। इसे दो रूपों में देख सकते हैं। पहला तो एक नई राजनीतिक ताकत के रूप में केजरीवाल का उदय है। केजरीवाल का इसलिये कि अपने गठन और उसके बाद के काल में यह आन्दोलन जो पहले अन्ना की छाया में खड़ा हुआ था बाद में केजरीवाल की परछाईं के रूप में बड़ा हुआ है। आप नाम की राजनीतिक पार्टी केजरीवाल की परछाईं ही है। यह केजरीवाल का ही निर्वैयक्तिक विस्तार है जिसमें कुछ अन्य चेहरे टाँके गए नजर आते हैं।

दिल्ली के चुनावों की दूसरी विस्मयकारी घटना है – भाजपा की विजय। मदन लाल खुराना और साहिब सिंह वर्मा के वक्तों से लेकर दिल्ली भाजपा अपना कोई चेहरा ही नहीं बना पाई है। बल्कि पिछले कुछ समय से तो जिन चेहरों को दिल्ली भाजपा के सिंहासन पर बिठाया गया वे उसके सिर के ताज नहीं बन पाए सिर के बोझ जरूर बन गये थे। भाजपा को उन्हें खुद ही सिंहासन से दूर करना पड़ा। इस चुनाव 2013 में भी जनता ने उन चेहरों को नकार दिया। नतीजों में कहीं निचला क्रम ही उन चेहरों को मिल पाया।

जिन चेहरों को आगे करके इन चुनावों में दिल्ली भाजपा जनमत पाने को आई वे भी बहुत सकारात्मक नहीं थे। चमत्कारिक तो बिल्कुल नहीं थे जैसे कि केजरीवाल रहे और आप नाम की राजनीतिक पार्टी के रूप में उनका निर्वैयक्तिक विस्तार रहा। तो फिर भाजपा दिल्ली में चुनाव जीती क्यों?

चुनाव के तत्काल बाद मैं कई लोगों से मिला और जाना की उन्होंने किसे मत दिया और क्यों दिया। अनेक मतदाताओं ने बताया कि उन्होंने भाजपा को वोट दिया है। परन्तु अनेक मतदाता तो अपने निर्वाचन क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी का नाम भी नहीं जानते थे। उन्होंने भाजपा को वोट दिया था। इन चुनावों से पहले दिल्ली भाजपा का कोई जनआन्दोलन तो याद नहीं आता है। तब इस भाजपा वोट का आधार क्या था?

इसका उत्तर है – नरेन्द्र मोदी। चुनाव पूर्व में भाजपा का एक ही आन्दोलन याद आता है – नरेन्द्र मोदी। शायद पूरे देश के मतदाता को नरेन्द्र मोदी के रूप में एक नायक मिला है। उसी नायक की परछाईं जब दिल्ली पर पड़ी तो वह दिल्ली की गद्दी बन कर अवतरित हुई। दिल्ली की गद्दी दिल्ली भाजपा की कमाई नहीं है बल्कि मोदी की परछाईं का मूर्तिमान रूप है। ठीक वैसे ही जैसे कि आप नाम की राजनीतिक पार्टी की सीटें केजरीवाल की परछाईं का मूर्तिमान रूप है। इस प्रकार चुनाव 2013 दो व्यक्तित्वों का अभ्युदय है भारतीय कैनवस पर मोदी और दिल्ली के फ़लक पर केजरीवाल। दिल्ली में भाजपा लगभग बिना चेहरे मोहरे वाली सी है।

यह बिना चेहरे वाली दिल्ली भाजपा दिल्ली की गद्दी को प्राप्त को कर रही है पर इसका निर्वाह कैसे करेगी यह मूल प्रश्न है। अगर यह दिल्ली भाजपा जल्द ही एक सुन्दर जनग्राह्य रूप धारण नहीं करती है तो मोदी नामक जनआन्दोलन को नुकसान पहुँचा सकती है।


यह अमूर्त मुख भाजपा निकट भविष्य में दिल्ली में क्या करती है, कैसा रूप धरती है – इसकी प्रतीक्षा मोदी, केजरीवाल और दिल्ली के मतदाता सबको रहने वाली है।

Thursday, December 5, 2013

Please uphold the law; Don’t violate it

Please uphold the law; Don’t violate it



The law on procedure is given in section 354 CrPC. It states whenever there is a commission of a cognizable offence its FIR shall immediately be lodged by the Officer In Charge of a Police Station. He is to investigate the offence and is to file a Charge-sheet before a Magistrate under section 173 CrPC.
In State of Haryana Vs. Ch. Bhajan Lal 1992 Supp. (1) SCC 335 the Supreme Court of India has laid down the law that any other procedure is illegal. Earlier police used to defer lodging an FIR and undertake some preliminary inquiry to ascertain if the offence was in fact committed. Supreme Court said, “No, this was a wrong procedure. Police was to lodge an FIR and then undertake investigation.” In relation to a cognizable offence, none has the power of investigation or inquiry before registration of an FIR. If any inquiry is to be carried on it would be done before a magistrate under section 200 CrPC.
Even after this direction by the Supreme Court various agencies used to commit a breach of the law and registration of FIRs were illegally deferred and delayed. Then a Constitution Bench of the Supreme Court undertook the matter in Lalita Kumari Vs. Govt. of UP in SLP (Crl.) 5986/2006 & 5200/2009 and scrutinized the entire law. In its judgment on 12 Nov. 2013 it again affirmed the position of law as it was laid down in State of Haryana Vs. Ch. Bhajan Lal 1992 Supp. (1) SCC 335   .
The Supreme Court deprecated any accused centred process leading to deviation from the established procedure. None else other than a local police officer is collect evidence. All proceedings are to be reported to in the court of a local magistrate. The procedure and the offence is not to be diluted against influential people.
If it is so then why a retired judge Justice AK Ganguly is allowed to evade the procedure and the substance of law. If the alleged actions of Justice Ganguly are sufficient to attract the provisions of a cognizable offence then why the agencies other than the local police are seized in of the matter. Why the victim is not allowed to approach the police and the magistrate so that the law may be set in motion.

Why the law laid down by the Supreme Court is being defeated?