परन्तु दिल्ली की जनता अवाक् है। कुछ कहते नहीं बन रहा
है। अनेक नए मतदाताओं ने इस बार एक निर्वाक् क्राँति Silent Revolution को वोट दिया था। बिना किसी शोर के दिल्ली
की शासन धमनियों में एक नये रंग का रक्त प्रवाहित कर दिया था ताकि एक सड़े हुए सिस्टम
का बोझ उसे और ना उठाना पड़े। लेकिन चुनाव परिणामों ने ना सिर्फ़ बोझ और अधिक बढ़ा
दिया है बल्कि जो चेहरे तारनहार के रूप में अवतरित होकर सामने आए थे चुनावों के बाद
उन चेहरों की आभा ही समाप्त हो गई है। वे चेहरे आभाहीन नज़र आ रहे हैं। जनता किंकर्त्त्तव्यविमूढ़
है, दुविधा में है,
कन्फ्यूज़्ड है कि ऐसे में क्या करे। भरोसा
चूर चूर हो गया लगता है।
आओ विचार करें।
सत्ता का स्वरूप राजनीतिक
है – राजनीति पर आधारित
है। वैसे ही जैसे कि बाजार का स्वरूप मौद्रिक है – मुद्रा (पैसे) पर आधारित है। यदि कोई सज्जन यह कहे कि उसे बाजार
से कोई गुरेज़ नहीं है बस उसमें पैसे का चलन रोक दो। पैसा बुरा है। पैसा लोभ लालच की
जड़ है। बाजार में से पैसा हटा दो तो मुझे बाजार स्वीकार है और मैं भी अपनी दुकान खोलने
के लिये तैयार हूँ। तो ऐसे तर्क सुनकर विद्वान लोग उन सज्जन को कहते हैं कि आप को यदि
पैसे से परहेज़ है तो बाजार में आते ही क्यों हो। दुकान खोलते ही क्यों हो। अध्यात्म
में जाओ और आश्रम खोलो। दुकान मत खोलो।
ऐसे ही तर्क आजकल दिल्ली
की हवाओं में तैर रहे हैं। हम सरकार बना सकते हैं यदि आप वादा करो कि आप कोई राजनीति
नहीं करोगे। यदि आप वादा करो कि आप अपने आँख कान मूँदकर हमारे पीछे पीछे चलोगे। यदि
आप वादा करो कि आप हमारी गालियों के जवाब में चुप रहोगे। गालियाँ तो हम आपको इस लिये
देते हैं कि हम ईमानदार हैं और अन्य कोई ईमानदार नहीं है। वादा करो कि चुपचाप हमारी
गालियाँ सुनते रहोगे और कभी पलटकर जवाब नहीं दोगे। अगर जवाब दे दिया तो हम सरकार नहीं
बनाएँगे।
अब किसी दल को कोई
समाधान सूझ नहीं रहा है। वे राजनीतिक दल हैं। राजनीति ना करें तो क्या करें। शासन समीकरणों
द्वारा राजनीति ही उन दलों का आकार तय करती है। वे दल शासन का स्वरूप तय करते हैं।
अब शर्त लगाई जा रही है कि आप राजनीति ना करें। तो ऐसे में वे दल क्या करें। अगर वे
दल राजनीति ना करें तो फिर राजनीति कौन करेगा। आप तो ईमानदार हैं राजनीति करोगे नहीं
तो क्या आप उसी राजनीति को समाप्त करना चाहते हो जो राजनीति आपके जन्म, वृद्धि और पराक्रम के लिये जिम्मेदार है।
जो राजनीति आपको मुख्य पटल पर लाई वही आप बंद करवा रहे हैं तो फिर जनता का क्या होगा
जिसके पास राजनीतिक पद्धति के रूप में मतदान सबसे बड़ा हथियार है। आपकी ये बातें तो
उसी जनता के खिलाफ हैं जिसने आपके लिये वोट
किया था। क्या आप ऐसी बातें सोच समझ कर रहे हैं क्योंकि आपका दावा है कि आपसे बेहतर
कोई अन्य नहीं सोच सकता है।
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